पग-पग पोखर, पान मखान
सरस बोल, मुस्की मुस्कान
विद्या-वैभव शांति प्रतीक
ललित नगर दरभंगा थिक
मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी दरभंगा विद्या, वैभव, खानपान, मधुर मुस्कान और अपनी मीठी बोली के लिए दुनियाभर में मशहूर है। ध्रुपद गायन, मिथिला पेंटिंग, सिक्की और सुजनी लोककला के साथ अपनी गौरवशाली संस्कृति पर मिथिला के लोग नाज कर करते हैं। इन गौरवशाली अतीत और आसपास सैकड़ों पर्यटक स्थल होने के बावजूद मिथिला का ह्रदय स्थल दरभंगा आजादी के बाद से ही उपेक्षित है।
मछली, मखान, आम, ठेकुआ, अरिकंचन की सब्जी और तिलकौर के तरुआ के अद्भुत स्वाद के लिए दरभंगा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। मिथिला के पोखर, तालाब की मछली का स्वाद आपको दुनिया के किसी इलाके की मछली में नहीं मिल पाएगा। जट-जटिन, नटुआ नाच, छठ, मधुश्रावणी, सामा चकेवा के साथ सदियों से संगीत और लोककला का केंन्द्र होने पर भी यहां गिनती के पर्यटक पहुंचते हैं।
दरभंगा के पर्यटन पर नजर डालने से पहले आपको दरभंगा राज के बारे में कुछ जान लेना जरूरी है। आजादी से पहले अंग्रेजी शासनकाल में जब देश राजा-रजवाड़ों में बंटा था और जमींदारी प्रथा थी, उस समय दरभंगा देश में सबसे अमीर और सबसे सम्पन्न इलाका था। उस समय दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह सभी जमींदारों के अगुवा थे। महारानी विक्टोरिया द्वारा स्थापित अंग्रेजों के सबसे प्रतिष्ठित नाइट ग्रांड कमांडर (GCIE) सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया था। दरभंगा महाराज के पास अपना हवाई अड्डा, हवाई जहाजों का बेड़ा और अपना रेल नेटवर्क था। महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह ने 1873 में तिरहुत स्टेट रेलवे बनाई थी। उन्होंने अपने लिए एक निजी रेलवे स्टेशन नरगौना में बनाया था। वहां उनकी सैलून रुकती थी। इस सैलून से महात्मा गांधी और डॉ राजेंद्र प्रसाद जैसे स्वतंत्रता सेनानी दरभंगा आते थे।
अब आइए एक नजर डालते हैं दरभंगा के प्रमुख दर्शनीय स्थलों पर-
राज कैंपसदरभंगा का प्रमुख पर्यटन स्थल यहां का राज परिसर यानी राज कैंपस है। इस राज कैंपस में दर्जनों भव्य ऐतिहासिक महल और मंदिर हैं। दरभंगा का यह राज परिसर अब शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। परिसर में मौजूद भव्य महलों में नरगौना महल, आनंदबाग महल एवं बेला पैलेस प्रमुख हैं। राज परिसर में दो यूनिवर्सिटी भी हैं। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय और कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय। दुनिया में यह ऐसा पहला मामला है कि किसी राजा- महाराजा ने अपने महल को शिक्षा के लिए दान कर दिया। लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस
लक्ष्मेश्वर विलास पैलेस में आज कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय है। 19वीं सदी में यह एशिया के सर्वश्रेष्ठ महलों में एक था। इसकी खूबसूरती और भव्यता के चर्चे 1884 में लंदन टाइम्स में हो चुके हैं। फ्रांसीसी आर्किटेक्ट द्वारा निर्मित इस महल की वास्तुकला देखते ही बनती है। 7 अक्तूबर 1880 में इसके शिलान्यास पर तत्कालीन ले. गर्वनर सर आशले हेडन दरभंगा आए थे। उस समय इस महल के बगान में 41 हजार पेड़ थे, हालांकि इनमें से ज्यादातर पेड़ अब काटे जा चुके हैं।
नरगौना पैलेस
नरगौना पैलेस अपने-आप में एक अद्भुत भवन है। यह महल आजकल ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अधीन है। इस महल में निर्माण में एक भी ईंट का प्रयोग नहीं किया गया है। यह पूरा महल सीमेंट के दीवारों और खंभों से बना है। यह देश का पहला पूरी तरह से वातानुकुलित महल था। साथ ही देश-दुनिया में शायद अकेला पैलेस था, जिसके परिसर में निजी रेलवे स्टेशन बनाया गया था। इस भव्य नरगौना पैलेस का डिजाइन एक तितली के जैसा है। 1941 में डज वास्तुशैली से तैयार इस महल में 14 महाराजा सूट सहित 89 कमरे हैं। इस पैलेस में पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, जाकिर हुसैन, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी भी ठहर चुके हैं।
राज किला
दरभंगा के वैभवशाली अतीत का एक और गवाह है दरभंगा का किला। लाल रंग का होने के कारण इस राज किला को दरभंगा का लाल किला भी कहा जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह किला दिल्ली के लाल किला से करीब 9 फीट ऊंचा है। बताया जाता है कि महाराजा कामेश्वर सिंह ने इसे बनाया था। इस किला के भीतर राज परिवार के लोग रहते थे। किला के भीतर कई मंदिर और महल हैं। सुरक्षा की दृष्टि से किले के भीतर दीवार के चारों पर तालाब बनाया गया था।
बेला पैलेस
दरभंगा के सबसे सुन्दर और भव्य स्थलों में एक नाम और है बेला पैलेस का। बेला पैलेस को महाराजा कामेश्वर सिंह के भाई विश्वेश्वर सिंह ने 1934 में आए भूकंप के बाद बनवाया था। अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध 65 एकड़ में फैले इस महल में फिलहाल पोस्टल ट्रेनिंग सेंटर है। इस डाक प्रशिक्षण केंद्र में बिहार, झारखंड, असम, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों के डाक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।
श्यामा मंदिर
राज परिसर में आम लोगों के लिए सबसे प्रसिद्ध जगह है श्यामा माई काली मंदिर। इस मंदिर की स्थापना 1933 में महाराज कामेश्वर सिंह में अपने पिता रामेश्वर सिंह की चिता पर की थी। महाराज रामेश्व सिंह की चिता पर मंदिर होने के कारण इसे रामेश्वरी श्यामा माई मंदिर भी कहते हैं। श्मशान पर मंदिर होने के बावजूद यहां रोज काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यहां शादी-विवाह और मुंडन जैसे मांगलिक कार्य भी कराए जाते हैं। नवरात्र के दौरान यहां काफी भीड़ रहती है और दर्शन के लिए घंटों लग जाते हैं। इस मंदिर में दर्शन करके आपको असीम शांति की अनुभूति होगी।
संकटमोचन मनोकामना मंदिर
श्यामा माई काली मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है संकटमोचन मनोकामना मंदिर। हालांकि यह मंदिर कुछ छोटा है, लेकिन आमलोगों के बीच इस मंदिर की काफी प्रतिष्ठा है। लोगों में ऐसा विश्वास है कि यहां पूजा करने से मनोवांछित फल मिलता है और हर मनोकामना पूरी हो जाती है। हर मंगलवार और शनिवार को यहां भारी भीड़ होती है। महावीर जी के इस मंदिर में लोग लड्डू चढ़ाते हैं।
मखदूम शाह दरगाह
दरभंगा रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर दिग्घी पोखर के पास करीब 400 साल पुराना हजरत मखदूम भीखा शाह सैलानी रहमतुल्लाह अलैह का मजार है। बकरीद के दौरान यहां काफी जायरीन आते हैं। इसके साथ ही टावर चौक के पास बनी मस्जिद और सूफी संत मकदूम बाबा की मजार भी काफी लोकप्रिय है। लोग यहां इबादत करने आते हैं।
महाराजा लक्ष्मिश्वर सिंह म्यूजियम और चंद्रधारी म्यूजियम
दरभंगा में दो संग्रहालय (म्यूजियम) हैं- महाराजा लक्ष्मिश्वर सिंह म्यूजियम और चंद्रधारी म्यूजियम। इस दोनों म्यूजियम में राज परिवार से संबंधित ऐसी कलात्मक और अमूल्य दुर्लभ सामग्रियां हैं जो दुनिया में आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे। दरभंगा राज के जमाने की अमूल्य, दुर्लभ वस्तुएं, सोने, चांदी और हाथी दांत के बने हथियारों को यहां प्रदर्शित किया गया है। कई दुर्लभ चीजें चोरी होने की भी शिकायतें मिली हैं, फिर भी इस म्यूजियम में आकर आप अपने इतिहास के सुनहरे दौर का अवलोकन कर सकते हैं।
दिग्घी-हराही पोखर
दरभंगा शहर ही नहीं पूरा मिथिला पोखर-तालाब के लिए मशहूर है। दरभंगा शहर में ही कई बड़े-बड़े तालाब हैं जो देखरेख के अभाव में और अतिक्रमण के कारण अपनी सुंदरता खो रहे हैं। दिग्घी पोखर- हराही पोखर आपको किसी झील सा अनुभव कराएंगे। मिथिला के लोग माछ (मछली) प्रेमी होने के कारण पोखर बनवाते थे। इससे मछली तो मिलता ही है, जल संरक्षण भी होता है। लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है।
राजनगर पोखर |
दरभंगा के आसपास के अन्य पर्यटन स्थल-
कुशेश्वरस्थान मंदिर एवं पक्षी विहारदरभंगा से करीब 70 किलोमीटर दूर कुशेश्वरस्थान में रामायण काल का एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है। इसे मिथिला का बाबाधाम माना जाता है। श्रावण में कांवड़ के दौरान और शिवरात्रि के समय यहां भारी भीड़ रहती है। बाढ़ वाला इलाका होने के कारण वेटलैंड भी है। करीब 10 हजार एकड़ में फैला यह इलाका वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया है। लोग यहां पक्षी विहार के लिए आते हैं। यहां कई देशों से आए पक्षियों का प्रवास होता है। सर्दी के मौसम में यहां आपको कई दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का दर्शन हो सकते हैं।
अहिल्या स्थान
अहिल्या स्थान में देवी अहिल्या को समर्पित मंदिर है। रामायण में गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या का जिक्र है। देवी अहिल्या गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बन गई थीं। जिनका भगवान राम ने उद्धार किया था। अहिल्या स्थान दरभंगा से करीब 20 किलोमीटर दूर है। यहां मंदिर के अलावा एक गौतम कुंड भी है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है। यह जगह अब रामायण सर्किट से भी जुड़ चुका है।
राजनगर, मधुबनी
दरभंगा से करीब 50 किलोमीटर दूर राजनगर का ऐतिहासिक राज कैंपस इंक्रीडेबल इंडिया का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहां के महल और मंदिर स्थापत्य कला के अद्भूत मिसाल पेश करते हैं। दीवारों पर की गई नक्काशी, कलाकारी और कलाकृति देखकर आप दंग रह जाएंगे। राज कैंपस में बने सभी महल और मंदिर अपनी भव्यता और खूबसूरती की दृष्टि से बेजोड़ हैं। यहां के भव्य मंदिर और महल पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेते हैं। भव्यता और वैभव की झलक आप यहां की दीवार, मेहराब, गुंबद से लेकर मूर्ति तक में देख सकते हैं। यहां के शिल्प और कलाकृति में आपको मिथिला पेंटिंग के साथ देशी-विदेशी दोनों शैली का अनुपम समागम देखने को मिलेगा।
कैसे पहुंचें दरभंगा
दरभंगा देश के सभी प्रमुख शहरों से रेल, बस और वायु सेवा से जुड़ा हुआ है। दरभंगा एयरपोर्ट से दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद और बंगलुरु के लिए नियमित यात्री उड़ान है। हवाई पट्टी के हिसाब से यह पटना सहित देश के कई बड़े सिविल एयरपोर्ट से भी बड़ा है।
-हितेन्द्र गुप्ता
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